स्मृति ईरानी 2014 से लेकर 2019 तक राज्यसभा में और 2019 से लेकर 2024 तक लोकसभा में आपने एक आवाज खूब सुनी होगी चीखती हुई चिल्लाती हुई विपक्ष पर हमला बोलती हुई एक महिला नेता जिनका नाम स्मृति ईरानी नरेंद्र मोदी के दोनों कार्यकाल में यह मंत्री रही लेकिन 2024 इनके लिए अच्छा नहीं रहा 2024 में इनको लगता था कि अमेठी में इनका मुकाबला कांग्रेस के राहुल गांधी से होगा जिनको इन्होंने 2019 में चुनाव हरा दिया था लेकिन 2024 के चुनाव में ऐसा कुछ हुआ नहीं राहुल गांधी रायबरेली चले गए जहां से उनकी मां सांसद थी वहां से चुनाव लड़े और अमेठी में सबको चौका हुए कांग्रेस ने किशोरी लाल शर्मा को अपना प्रत्याशी बना दिया स्मृति रानी को यह गुमान हो गया था कि किशोरी लाल शर्मा को तो वो चुटकियों में हरा देंगी किशोरी लाल शर्मा उनके लिए कोई चुनौती नहीं है लेकिन दोस्तों यह दांव उल्टा पड़ गया जितने वोटों से स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को चुनाव हराया था उससे दुगने वोटों से किशोरी लाल शर्मा से वह चुनाव हार गई अब जाहिर सी बात है लोकसभा का चुनाव हार गई तो नरेंद्र मोदी की सरकार में एंट्री तो मिलने से रही स्मृति रानी को कोई पद नहीं मिला हाल ही में अलअलग चुनावी राज्यों में प्रभारी और सह प्रभारी बनाए गए स्मृति रानी को वहां भी जगह नहीं मिली अब सवाल यह खड़ा हो गया है कि आखिर स्मृति रानी का राजनीतिक भविष्य क्या है स्मृति रानी को अब कौन सी जिम्मेदारी भारतीय जनता पार्टी देगी या फिर नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने स्मृति रानी का विकल्प ढूंढ लिया है नरेंद्र मोदी और अमित शाह को लगने लगा है कि अब स्मृति ईरानी की जगह दूसरे नेताओं को लाना चाहिए हिंदुस्तान में इस बात पर बहस शुरू हुई कि क्या स्मृति ईरानी को कंगना रनौत ने रिप्लेस कर दिया है भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर मंडी से चुनाव जीतकर संसद पहुंची फिल्म एक्ट्रेस कंगना रनौत जिस तरह से बयान दे रही थी उसके बाद यह बहस शुरू हुई लेकिन दोस्तों कंगना रनौत उस रेस में अभी बहुत पीछे हैं क्योंकि स्मृति रानी जिस अंदाज में विपक्ष पर हमलावर होती हैं जिस तरह से वो विपक्ष को गिरती हैं सिलेंडर लेकर सड़क पर बैठ जाया करती थी उन स्मृति रानी को रिप्लेस करना इतना भी आसान नहीं था लेकिन दोस्तों यह नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी है जो नेताओं का रिप्लेसमेंट करना बखूबी जानती है । अब दिल्ली के गलियारों में इस बात की खूब चर्चाएं हो रही हैं कि स्मृति रानी की जगह बांसुरी स्वराज ने ले ली है दोस्तों बांसुरी स्वराज सुषमा स्वराज की बेटी हैं और बांसुरी स्वराज इस बार लोकसभा का चुनाव भी जीती हैं सांसद बन गई हैं और बांसरी स्वराज खुद को दिल्ली का दिल्ली का एक बड़ा उभरता हुआ नेता मान रही हैं उनकी मां सुषमा स्वराज केंद्र की सरकारों में भी मंत्री रही और दिल्ली की मुख्यमंत्री भी रही हालांकि उनका कार्यकाल बहुत लंबा नहीं रहा लेकिन अब सवाल इसलिए भी खड़े होने शुरू हो गए हैं और यह चर्चाएं इसलिए भी है क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री की कुर्सी से इस्तीफा दे दिया है और अपनी जगह अपना महिला कार्ड चला है आतिशी को मुख्यमंत्री बना दिया है ऐसे में भारतीय जनता पार्टी भी यह सोच रही है कि आतिशी का मुकाबला करने के लिए भारतीय जनता पार्टी किसी महिला नेता को ही आगे करें स्मृति रानी को लगता था कि दिल्ली की कमान उनको मिल जाएगी मसलन दिल्ली प्रदेश का अध्यक्ष उनको बनाया जा सकता है या फिर कुछ ऐसी जिम्मेदारियां दे दी जाए ताकि दिल्ली में स्मृति रानी का दखल सीधे बढ़ जाए क्योंकि ज्यादा वक्त नहीं है दोस्तों 6 महीने से भी कम वक्त है जब दिल्ली में विधानसभा का चुनाव होना है और आज की तारीख में दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी के पास कोई चेहरा नहीं है जिस चेहरे पर चुनाव लड़ा जा सके स्मृति रानी को लगता था कि भारतीय जनता पार्टी उन पर भरोसा करेगी क्योंकि स्मृति रानी भी दिल्ली में लोकसभा चुनाव भी लड़ चुकी हैं हालांकि वह चुनाव हार गई थी स्मृति रानी को लगता है कि अगर वह दिल्ली का चेहरा बन जाएंगी तो हो सकता है कि अगर भारतीय जनता पार्टी की सरकार बने तो स्मृति रानी दिल्ली की मुख्यमंत्री बन जाए लेकिन दोस्तों फिलहाल ऐसा होता नजर नहीं आ रहा क्योंकि जिस तरह से दिल्ली के पूरे एपिसोड पर जिस तरह से अरविंद केजरीवाल बाहर आए उन्होंने इस्तीफा दिया आतिशी मुख्यमंत्री बनी इस हर मोर्चे पर जो एक चेहरा सबसे ज्यादा आक्रामक अंदाज में सामने देखने को मिला जिसने सबसे ज्यादा आम आदमी पार्टी को केजरीवाल की सरकार को घेरा उस चेहरे का नाम भाजपा की सांसद बांसुरी स्वराज है और बांसुरी स्वराज को कहीं ना कहीं दिल्ली दरबार से नरेंद्र मोदी और अमित शाह से ग्रीन सिग्नल भी मिलता हुआ दिख रहा है कई राजनीतिक विश्लेषक भी इस ओर इशारा कर रहे हैं कि बांसुरी स्वराज दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी का चेहरा बन सकती हैं अब दोस्तों बांसुरी स्वराज अगर चेहरा बन सकती हैं तो सवाल फिर वहीं आकर खड़ा होता है कि फिर स्मृति रानी का भविष्य क्या है क्योंकि स्मृति रानी विधानसभा चुनाव किसी प्रदेश में जाकर लड़े ऐसा संभव दिखता नहीं लोकसभा वो कहां से लड़ेंगी वह 5 साल बाद की बात है राज्यसभा उनको भेजा जाएगा इस बात पर डाउट है कहीं कि वह प्रभारी बनाई नहीं गई हैं टीवी स्क्रीन पर भी कम नजर आ रही हैं आजकल वह बयान नहीं दे रही हैं कहीं प्रवक्ता बनकर बैठ नहीं रही है कहीं किसी मुद्दे पर राय नहीं है यानी स्मृति रानी बिल्कुल साइलेंट हो गई हैं पिछले तीन महीनों में जून जुलाई अगस्त और लगभग सितंबर खत्म होने को है इतने लंबे वक्त में स्मृति रानी की चुप्पी दोस्तों कई सवालों को जन्म देती है क्या स्मृति रानी राजनैतिक तौर पर हाशिए पर चली गई है।